शर्त लगा लीजिए, इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप प्यार में धोखा देना और धोखा खाना बंद कर देंगे…

ब्लॉग/मनीष कुमार: भरोसा एक ऐसा शब्द है, जो अपने आप में एक पूरा रिश्ता है. यह आदमी को आदमी से और दो दिलो को एक डोर से जोड़ता है. एक व्यक्ति को दुसरे के करीब लाता है. जिस रिश्ते में भरोसा न हो. वो रिश्ता ज्यादा दिन तक नहीं चलता. अगर रिश्ते के घर में भरोसे की जगह छोटी हो गई हो तो समझो संदेह ने अपनी जगह बना ली है. जिससे गलतफहमियाँ बढ़ जाती है और रिश्ते टूट जाते है.और टूटे हुए धागे को कितना भी जोड़ो गाठ तो पड़ ही जाती है.

अगर किसी अपने ने भरोषा तोड़ा तो व्यक्ति इतना टूट जाता है, की उसे कोई अपना नजर नहीं आता, लगता है जैसे पूरी दुनिया में वो अकेला खड़ा है. भरोसे के लिए सच का साथ होना जरुरी है, क्योंकि एक बार झूठ बोले तो सच्ची बात पे भी शक या संदेह बना रहता है और भरोसा दिलाने में तो उम्र गुजर जाती है. आजकल तो लोग नीव सच की डालते है लेकिन झूठ की दिवार खड़ी कर देते है, लेकिन ये दीवारे उस बेकार सीमेंट की तरह खोखली होती है. जो जब बना हो तब तक तो कुछ दिनों तक चल जाता है लेकिन एक हलकी सी भी तूफ़ान उस दिवार को गिरा देती है.

इनके निचे भरोषा दबकर अपनी दम तोड़ देता है. एक रिश्ता जो अपनी दिल की धड़कन की तरह बंद हो जाती है. और वो ख़त्म हो जाता है. कहने को तो ख़त्म बस रिश्ता होता है, लेकिन उसके बाद जो दिल का दर्द होता है. जो ना जीने देती है और न ही मरने. जिन्हें हम सबसे ज्यादा प्यार करते है, वो ही दूर हो जाते है. इसलिए सच बोलो क्योंकि

सच को डरने की जरूरत नहीं होती

और झूठ हमेशा सहमा रहता है

किसी ने सच ही कहा है की:-

“सच परेशान हो सकता है ” पराजित नहीं

तो झूठ और संदेह को हावी मत होने दो और भरोसा टूटने मत दो तो सारे रिश्ते खुशनुमा लंगेगे नहीं तो हम अपनों की कतार में खड़े होकर भी अकेले नजर आएंगे, क्योंकि सारे रिश्ते महज औपचारिकता बनकर रह जाते हैं. और हमें उन बोझिल से रिश्ते को ढोते-ढोते थक जाते हैं. हर शख्स शक के दायरे में खड़ा होता है. निगाहें हर चेहरे में प्यार और विश्वास ढूंढती है. जिसपर भरोसा कर सके. ऐसा कोई भी रिश्ता दिखता है तो उससे अपनेपन का एहसास होता है. अनजाना होकर भी अपना सा लगता है. भगवान केवल इंसान बनाता है, पर रिश्ते हम स्वयं बनाते हैं, तो ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम उसे कैसे निभाते हैं.

अनजाने में भी कोई अगर हमारे दिल को ठेस पहुंच जाता है, विश्वास और भरोसे को तोड़ता है तो उसे उसके लिए किए की सजा मिलती है. ऐसे रिश्ते को एक मौका आगे बढाने को देना चाहिए क्योंकि ऐसा लोग दोबारा नहीं करते. लेकिन जानबूझकर कोई हमारे भरोसे को तोड़े, तो इसके लिए कोई सजा नहीं है क्योंकि उसे जितनी भी सजा दी जाए कम है. इसलिए ऐसे रिश्ते को यहीं पर खत्म कर देना चाहिए, क्योंकि जानबूझकर करने वालो कि यह आदतों में शामिल होता है. ऐसे लोग बार-बार करते हैं.

भगवान ने इंसान बनाया

इंसान ने फिर रिश्ता बनाया

रिश्ते में कुछ समय बिताया

फिर उसने भरोसा दिलाया

साथ चलने का साथ रहने का

साथ हंसने का साथ रोने का

पर वक़्त की थी कुछ ऐसी साजिस

एक झूठ का झोका आया

उसने जरा न समय गवाया

सारी हसरतो को मिट्टी में मिलाया

अब सबसे बड़ा सवाल यह है, की क्या हमलोग भरोसा करना ही बंद कर दे.. तो नहीं ये भरोसे की डोर से ही तो ये दुनिया बंधी है. हमें इस डोर को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए. कहने को तो प्यार में कोई शर्त नहीं होती है लेकिन आँख बंद करके भी सबकुछ सहते जाना ये प्यार नहीं सौदा होता है.

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